SEBA Class 9 Hindi Chapter 3 ब्रज की संध्या प्रश्न और उत्तर Braj Ki Sandhya – Ambar Bhag 1 Solutions | Assam Eduverse
Chapter Overview:
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SEBA / ASSEB Class 9 Hindi – Chapter 3 ब्रज की संध्या Complete Solutions, Summary & Question Answers | Braj Ki Sandhya Solutions
बोध एवं विचार
प्रश्न 1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए :
(क) हरिऔध जी किस रूप में हिन्दी साहित्य-जगत में सुपरिचित हैं ?
उत्तर: हरिऔध जी ‘कवि-सम्राट’ और ‘प्रियप्रवास’ महाकाव्य के रचयिता के रूप में हिन्दी साहित्य-जगत में सुपरिचित हैं।
(ख) हरिऔध जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर: हरिऔध जी का जन्म सन् 1865 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान पर हुआ था।
(ग) हरिऔध जी द्वारा विरचित किन्हीं दो काव्य-रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर: हरिऔध जी द्वारा विरचित दो काव्य-रचनाओं के नाम हैं: ‘प्रियप्रवास’ और ‘वैदेही वनवास’।
(घ) हरिऔध जी द्वारा विरचित दो मौलिक उपन्यास क्या-क्या हैं?
उत्तर: हरिऔध जी द्वारा विरचित दो मौलिक उपन्यास हैं: ‘ठेठ हिंदी का ठाठ’ और ‘अधखिला फूल’।
(ङ) ‘प्रियप्रवास’ पर हरिऔध जी को कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ था ?
उत्तर: ‘प्रियप्रवास’ पर हरिऔध जी को मंगलाप्रसाद पारितोषिक नामक पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
प्रश्न 2. संक्षिप्त उत्तर दीजिए :
(क) संध्या समय ब्रज के आकाश में बनी शोभा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: संध्या के समय ब्रज के आकाश में लालिमा फैल गई थी और सूर्य की अंतिम किरणें पेड़ों की चोटियों पर शोभायमान थीं।
(ख) संध्या समय ब्रज के स्थल-भाग पर बनी शोभा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: संध्या के समय चारों दिशाएँ लालिमा से भर गई थीं और वृक्षों के हरे-भरे समूह लालिमा में डूबे हुए से दिखाई दे रहे थे।
(ग) संध्या समय ब्रज के जल-भाग पर बनी शोभा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: संध्या के समय आकाश की लालिमा नदियों और सरोवरों के जल में पड़कर बहुत ही सुंदर और मनमोहक लग रही थी।
प्रश्न 3. सम्यक् उत्तर दीजिए:
(क) ‘ब्रज की संध्या’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर: ‘ब्रज की संध्या’ कविता में कवि हरिऔध जी ने ब्रज की संध्या के मनमोहक सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि दिन समाप्त होने वाला था और आकाश लाल हो रहा था। सूर्य की किरणें पेड़ों की चोटियों पर शोभा पा रही थीं। पक्षियों का समूह कलरव कर रहा था और वे आकाश में उड़ रहे थे। चारों ओर लालिमा फैल गई थी और हरे-भरे पेड़ भी लालिमा में डूबे से लग रहे थे। आकाश की यह लालिमा नदियों और सरोवरों के जल में पड़कर और भी सुंदर लग रही थी। धीरे-धीरे सूर्य का बिंब आकाश से ओझल हो रहा था। उसी समय यमुना के किनारे स्थित कुंज में मुरली बज उठी, जिससे गिरि-कंदराएँ और पूरा वन ध्वनिमय हो उठा। यह कविता ब्रज की प्राकृतिक सुंदरता और कृष्ण की मुरली की मधुरता को दर्शाती है।
(ख) हरिऔध जी का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर: अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवि हैं। वह खड़ीबोली को काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले कवियों में से एक थे। उन्होंने ब्रजभाषा और खड़ीबोली दोनों में ही काव्य रचना की। उनकी रचनाओं में खड़ीबोली का सरल और मधुर रूप देखने को मिलता है। ‘प्रियप्रवास’ उनका प्रसिद्ध महाकाव्य है। उन्हें ‘कवि-सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उन्होंने उपन्यास, नाटक और अनुवाद भी किए। हिंदी साहित्य में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
प्रश्न 4. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
(क) दिवस का अवसान समीप था।
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु-शिखा पर थी अब राजती।
कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा ॥
(ख) झलकने पुलिनों पर भी लगी।
गगन के तल की यह लालिमा।
सरि सरोवर के जल में पड़ी।
अरुणता अति ही रमणीय थी ॥
प्रश्न 5. सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
(क) विपिन बीच विहंगम-वृन्द… नभ मण्डल मध्य थी ॥
उत्तर:
संदर्भ: यह पंक्तियाँ हरिऔध जी द्वारा रचित ‘ब्रज की संध्या’ कविता से ली गई हैं।
प्रसंग: कवि ने संध्या के समय वन में पक्षियों की गतिविधियों और उनकी सुंदरता का वर्णन किया है।
व्याख्या: इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि संध्या के समय वन में पक्षियों का समूह मधुर स्वर में चहचहा रहा था। उनकी चहचहाहट बढ़ती जा रही थी। विविध पक्षियों का समूह ध्वनि करता हुआ आकाश मंडल के बीच उड़ रहा था। यह दृश्य बहुत ही मनमोहक था।
(ख) अचल के शिखरों पर… मध्य शनैः शनैः ॥
उत्तर:
संदर्भ: यह पंक्तियाँ हरिऔध जी द्वारा रचित ‘ब्रज की संध्या’ कविता से ली गई हैं।
प्रसंग: कवि ने संध्या के समय सूर्य के धीरे-धीरे अस्त होने का वर्णन किया है।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि दिन ढलने पर सूर्य की किरणें जो पहले पेड़ों की चोटियों पर खेल रही थीं, अब पहाड़ों की चोटियों पर जा चढ़ी हैं। धीरे-धीरे सूर्य का बिम्ब आकाश मंडल के मध्य में तिरोहित (लुप्त) हो चला है, यानी सूर्य अस्त हो रहा है।
(ग) ध्वनिमयी करके गिरि… राजित-कुंज में ॥
उत्तर:
संदर्भ: यह पंक्तियाँ हरिऔध जी द्वारा रचित ‘ब्रज की संध्या’ कविता से ली गई हैं।
प्रसंग: कवि ने संध्या के समय श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर धुन का वर्णन किया है।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि जैसे ही सूर्य का बिम्ब आकाश से ओझल हो चला, उसी समय यमुना के किनारे स्थित कुंज में श्रीकृष्ण की मुरली बज उठी। मुरली की मधुर ध्वनि से पहाड़ों की गुफाएँ (गिरि-कन्दरा) और सुंदर वन केलि-निकुंज (खेलने के स्थान) ध्वनिमय हो उठे।
भाषा एवं व्याकरण
1. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण रूप लिखिए :
लालिमा – लाल
हरीतिमा – हरित
अरुणिमा – अरुण
कालिमा – काला
गरिमा – गरिष्ठ
2. निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह कीजिए:
तरु-शिखा – तरु की शिखा
नभ-लालिमा – नभ की लालिमा
तरणि-बिम्ब – तरणि का बिम्ब
गिरि-कन्दरा – गिरि की कन्दरा
तरणिजा-तट – तरणिजा का तट
3. पाठ में आए किन्हीं आठ तत्सम शब्दों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर: अवसान, गगन, तरु, प्रभा, विपिन, विहंगम, तरणि, शनैः, अचल, कुंज।
4. निम्नलिखित शब्दों से प्रत्ययों को अलग कीजिए:
विहगावली – विहग + आवली
कवितावली – कविता + आवली
गीतावली – गीत + आवली
दोहावली – दोहा + आवली
शब्दावली – शब्द + आवली
5. निम्नांकित शब्दों के अर्थ लिखिए :
अवसान – अंत, समाप्ति
प्रभा – प्रकाश, चमक
विपिन – वन, जंगल
विहंगम – पक्षी
पादप – पेड़, वृक्ष
सरि – नदी
तरणि – सूर्य
तरणिजा – यमुना
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