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SEBA Hindi Grammar लोकोक्तियाँ (Lokoktiyan) | Assam Eduverse

Chapter Overview:

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ASSEB / SEBA Hindi Grammar – लोकोक्तियाँ की परिभाषा और प्रयोग (Lokoktiyan)

लोकोक्तियाँ : अर्थ एवं वाक्य प्रयोग (Lokoktiyan Practice Questions with Solutions)

  1. जैसी करनी वैसी भरनी (कर्म का फल मिलता है) – बुरा करोगे तो बुरा ही मिलेगा।
  2. देर आए दुरुस्त आए (देर से सही) – वह पास हुआ, देर आए दुरुस्त आए।
  3. जहाँ चाह वहाँ राह (इच्छा से रास्ता मिलता है) – मेहनत में जहाँ चाह वहाँ राह है।
  4. नाच न जाने आँगन टेढ़ा (अपनी कमी छिपाना) – हारकर वह नाच न जाने आँगन टेढ़ा कहने लगा।
  5. एक हाथ से ताली नहीं बजती (दोनों की भूमिका) – झगड़े में एक हाथ से ताली नहीं बजती।
  6. जैसा देश वैसा भेष (परिस्थिति के अनुसार) – विदेश में जैसा देश वैसा भेष अपनाओ।
  7. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत (समय निकल जाना) – मौका गया, अब पछताने से क्या।
  8. घर का भेदी लंका ढाए (अपना ही नुकसान करे) – यहाँ घर का भेदी लंका ढा रहा है।
  9. थोथा चना बाजे घना (कम ज्ञान ज़्यादा शोर) – वह थोथा चना बाजे घना है।
  10. ऊँट के मुँह में जीरा (बहुत कम) – यह मदद ऊँट के मुँह में जीरा है।
  11. न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी (असंभव शर्त) – यह शर्त न नौ मन तेल होगी जैसी है।
  12. साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे (दोनों काम) – समाधान ऐसा हो कि साँप भी मर जाए।
  13. दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है (अनुभव से सतर्क) – धोखा खाकर वह सतर्क है।
  14. खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे (हार की झुंझलाहट) – हारकर वह खिसियानी बिल्ली बना।
  15. अधजल गगरी छलकत जाए (अल्प ज्ञान) – वह अधजल गगरी है।
  16. आ बैल मुझे मार (खुद मुसीबत बुलाना) – बेवजह झगड़ा आ बैल मुझे मार है।
  17. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे (दोषी उलटा बोले) – यहाँ उल्टा चोर कोतवाल को डाँट रहा है।
  18. जिसकी लाठी उसकी भैंस (बल का राज) – वहाँ जिसकी लाठी उसकी भैंस है।
  19. कौआ चला हंस की चाल (नकल में नुकसान) – उसने कौआ चला हंस की चाल की।
  20. नकल में अक्ल नहीं (नकल बेकार) – नकल में अक्ल नहीं होती।
  21. जितनी चादर हो उतने पाँव फैलाओ (हद में रहो) – खर्च में चादर देखकर चलो।
  22. घर की मुर्गी दाल बराबर (अपनों की कद्र नहीं) – वह घर की मुर्गी दाल बराबर समझता है।
  23. एक अनार सौ बीमार (माँग ज़्यादा) – नौकरी के लिए एक अनार सौ बीमार हैं।
  24. दाल में काला (कुछ गड़बड़) – इस सौदे में दाल में काला है।
  25. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता (सहयोग ज़रूरी) – काम में टीम चाहिए।
  26. जैसा बोओगे वैसा काटोगे (कर्म का फल) – मेहनत का फल मिलेगा।
  27. लोहा लोहे को काटता है (उपाय से समाधान) – समस्या का हल मिलेगा।
  28. बूँद-बूँद से सागर भरता है (छोटा-छोटा जोड़) – बचत से धन बढ़ता है।
  29. मेहनत का फल मीठा होता है (परिश्रम का परिणाम) – उसने मेहनत से पाया।
  30. कर्म ही पूजा है (काम का महत्व) – ईमानदारी से काम करो।
  31. नया मुल्ला ज़्यादा प्याज़ खाता है (नया उत्साह) – नए अफसर का हाल यही है।
  32. पेट पूजा पहले (पहले ज़रूरत) – काम से पहले पेट पूजा।
  33. ऊँची दुकान फीका पकवान (दिखावा) – नाम बड़ा काम छोटा।
  34. खाली बर्तन ज़्यादा बजते हैं (कम गुण) – वह खाली बर्तन है।
  35. दूध का दूध पानी का पानी (सच स्पष्ट) – जाँच से सच सामने आएगा।
  36. अंधों में काना राजा (कम विकल्प) – वहाँ वही अंधों में काना राजा है।
  37. जंगल में मोर नाचा किसने देखा (प्रशंसा न मिलना) – मेहनत बेकार गई।
  38. चोर की दाढ़ी में तिनका (दोषी की पहचान) – उसकी घबराहट बताती है।
  39. न रहे बाँस न बजे बाँसुरी (जड़ खत्म) – समस्या जड़ से हटाओ।
  40. बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद (अयोग्य व्यक्ति) – वह समझ नहीं पाएगा।
  41. आसमान से गिरे खजूर में अटके (और बुरा) – स्थिति और बिगड़ गई।
  42. एक पंथ दो काज (दो लाभ) – इस योजना से एक पंथ दो काज होंगे।
  43. घर में दाल नहीं, बाहर हलवा (दिखावा) – वह बाहर ही दिखावा करता है।
  44. खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान (भाग्य साथ) – किस्मत से काम बन गया।
  45. जिसका काम उसी को साजे (विशेषज्ञता) – यह काम उसी को साजे।
  46. नाच न जाने आँगन टेढ़ा (बहाना) – गलती पर बहाना।
  47. पानी सिर से गुजर जाना (हद पार) – अब सहन नहीं।
  48. सस्ता रोए बार-बार (घटिया चीज़) – सस्ता सामान मत लो।
  49. समय और ज्वार किसी की प्रतीक्षा नहीं करते (समय का महत्व) – समय पर काम करो।
  50. हाथ कंगन को आरसी क्या (प्रत्यक्ष प्रमाण) – सबके सामने है।
  51. कभी-कभी चुप रहना भी बुद्धिमानी है (संयम) – बहस में चुप रहो।
  52. साँच को आँच नहीं (सत्य सुरक्षित) – सच सामने आएगा।
  53. जो गरजते हैं वो बरसते नहीं (डींगें) – वह बस बातें करता है।
  54. नौ दिन चले अढ़ाई कोस (धीमी गति) – काम बहुत धीमा है।
  55. बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधे (जोखिम) – कोई आगे नहीं आया।
  56. भूखे भजन न होय गोपाला (पहले ज़रूरत) – पेट भरे बिना काम नहीं।
  57. जितनी गुड़ उतनी मिठास (अनुसार फल) – मेहनत के अनुसार फल।
  58. घर का भेदी लंका ढाए (अंदरूनी नुकसान) – अपनों ने नुकसान किया।
  59. दूर के ढोल सुहावने (दिखावटी आकर्षण) – बाहर से अच्छा लगता है।
  60. कानून के हाथ लंबे होते हैं (न्याय) – अपराध छिप नहीं सकता।
  61. जो जागे वही पाए (सजगता) – मेहनत से सफलता।
  62. बात का बतंगड़ बनाना (अतिशयोक्ति) – वह ऐसा करता है।
  63. जैसा राजा वैसी प्रजा (नेतृत्व का असर) – नेतृत्व बदलो।
  64. घर की बात घर में (गोपनीयता) – बात बाहर न करो।
  65. सांप निकल गया लकीर पीटना (बेकार पछतावा) – अब देर हो गई।
  66. जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन (आहार का असर) – अच्छा खाओ।
  67. उल्टी गंगा बहना (विपरीत) – नियम उलटे हो गए।
  68. नमक हराम (कृतघ्न) – वह नमक हराम निकला।
  69. जिनके घर शीशे के होते हैं (खुद दोषी) – वे दूसरों पर पत्थर न फेंकें।
  70. दूसरों की थाली में घी ज़्यादा लगता है (ईर्ष्या) – संतोष रखो।
  71. जो हुआ सो हुआ (भूलकर आगे बढ़ो) – अब आगे सोचो।
  72. दूध-का-जला छाछ भी फूँक-फूँक कर (सावधानी) – वह सतर्क है।
  73. हर चमकती चीज़ सोना नहीं (धोखा) – दिखावे में मत आओ।
  74. काग़ज़ी शेर (नाम मात्र) – वह काग़ज़ी शेर है।
  75. खेत रहे खाली बैल मरे पालने (अव्यवस्था) – संसाधन व्यर्थ गए।
  76. न रहेगा बाँस न बजे बाँसुरी (जड़ खत्म) – समस्या खत्म।
  77. एक दिन की चाँदनी (अस्थायी) – सफलता स्थायी नहीं।
  78. सौ सुनार की एक लोहार की (एक कठोर उपाय) – एक फैसला काफी।
  79. बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया (पैसे की ताकत) – आज यही सच है।
  80. पढ़े-लिखे गँवार (बिना समझ) – शिक्षा बिना समझ बेकार।
  81. खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे (झुंझलाहट) – हार पर ऐसा हुआ।
  82. अंधा बाँटे रेवड़ी (अयोग्य वितरण) – गलत बँटवारा।
  83. जिसके सिर पर हाथ हो (संरक्षण) – उसे डर नहीं।
  84. नाव डूबने पर तिनके का सहारा (अंतिम उपाय) – यही बचाव है।
  85. कान भरना (भड़काना) – उसने कान भरे।
  86. घर बैठे गंगा (आसानी) – सुविधा घर बैठे मिली।
  87. दूध में मक्खी (खामी) – सब अच्छा था, बस एक कमी।
  88. जैसा बोओ वैसा काटो (फल) – परिणाम मिलेगा।
  89. सिर मुँडाते ही ओले पड़ना (दुर्भाग्य) – शुरू में ही समस्या।
  90. ऊँट पहाड़ के नीचे (असमानता) – तुलना बेकार।
  91. नौ दो ग्यारह होना (भाग जाना) – चोर नौ दो ग्यारह हो गया।
  92. हाथ मलते रह जाना (पछतावा) – मौका चला गया।
  93. घर का भेदी (आंतरिक शत्रु) – वही दोषी है।
  94. दूध का दूध पानी का पानी (सच) – जांच से सब साफ।
  95. मेहनत रंग लाती है (फल) – उसकी मेहनत सफल हुई।
  96. कर्म का फल अवश्य मिलता है (न्याय) – सच है।
  97. जो बोया सो काटा (परिणाम) – गलती का दंड मिला।
  98. सब्र का फल मीठा होता है (धैर्य) – इंतज़ार करो।
  99. आज का काम कल पर मत छोड़ो (समय) – अभी करो।
  100. ईमानदारी सबसे बड़ी नीति है (नैतिकता) – यही जीवन मंत्र है।
  101. जहाँ धुआँ होता है वहाँ आग भी होती है (अफवाह का कारण) – बात बेवजह नहीं फैली।
  102. जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन (आहार का प्रभाव) – अच्छा खाओ।
  103. खुद की कमीज़ सबको छोटी लगती है (स्वार्थ) – वह ऐसा ही सोचता है।
  104. सिर जाए तो जाए पर बात न जाए (हठ) – वह अड़ा हुआ है।
  105. दूध की मक्खी (अप्रयोज्य) – उसे सबने अलग कर दिया।
  106. नदी में रहकर मगर से बैर नहीं (व्यवहारिकता) – वहाँ चुप रहो।
  107. एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं (दो प्रभुत्व नहीं) – नेतृत्व एक ही होगा।
  108. जिसके घर दाने उसके कमले दीवाने (संपन्नता) – पैसे का असर है।
  109. काटो तो खून नहीं (बहुत डर) – माहौल ऐसा था।
  110. घर का जोगी जोगड़ा (अपनों की अवहेलना) – वही हाल है।
  111. दूध से मुँह जला तो छाछ भी फूँक-फूँक कर (सावधानी) – अनुभव सिखाता है।
  112. जैसा राजा वैसी प्रजा (नेतृत्व का प्रभाव) – व्यवस्था वैसी ही होगी।
  113. पेट काटकर भी पेट पालना (त्याग) – उसने बच्चों के लिए किया।
  114. बड़ा मुँह बड़ी बात (दिखावा) – उसकी बातें वैसी हैं।
  115. खाने के दाँत और दिखाने के दाँत (दिखावा) – उसकी सच्चाई अलग है।
  116. जितना गुड़ उतनी मिठास (अनुपात) – मेहनत के अनुसार फल।
  117. एक हाथ से ताली नहीं बजती (सहयोग) – दोनों जिम्मेदार हैं।
  118. जिसकी जैसी करनी वैसी भरनी (कर्मफल) – परिणाम मिलेगा।
  119. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी (जड़ समाप्त) – समस्या खत्म।
  120. अंधों में काना राजा (कम विकल्प) – वही चुना गया।
  121. कभी निंदक नियरे राखिए (आलोचना लाभकारी) – सीख मिलती है।
  122. देर से समझ आना भी समझ है (सीख) – अब वह सुधर गया।
  123. घर का भेदी लंका ढाए (अंदरूनी नुकसान) – अपनों ने किया।
  124. दूर की कौड़ी लाना (बेकार बात) – यह तर्क व्यर्थ है।
  125. जैसा बोओगे वैसा काटोगे (कर्मफल) – मेहनत रंग लाई।
  126. कौआ चले हंस की चाल (नकल) – नुकसान हुआ।
  127. नौ मन तेल होगा तब राधा नाचेगी (असंभव) – यह शर्त पूरी नहीं।
  128. दाल में कुछ काला है (संदेह) – मामला साफ नहीं।
  129. खाली बर्तन ज़्यादा बजते हैं (अल्प गुण) – वही बोलता है।
  130. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता (सहयोग) – टीम चाहिए।
  131. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं (डींग) – वह बस बोलता है।
  132. मेहनत का फल मीठा होता है (परिणाम) – सच है।
  133. घर बैठे गंगा (आसानी) – सुविधा मिल गई।
  134. कानून के हाथ लंबे होते हैं (न्याय) – अपराध छिपेगा नहीं।
  135. जो जागे वही पाए (सजगता) – मेहनत करो।
  136. बूँद-बूँद से घड़ा भरता है (संचय) – बचत जरूरी है।
  137. हर चमकती चीज़ सोना नहीं (धोखा) – सावधान रहो।
  138. दूर के ढोल सुहावने (भ्रम) – हकीकत अलग है।
  139. साँच को आँच नहीं (सत्य) – सच जीतेगा।
  140. सिर मुँडाते ही ओले पड़ना (दुर्भाग्य) – शुरुआत में ही संकट।
  141. समय बड़ा बलवान है (समय की शक्ति) – समय बदल देता है।
  142. जैसा देश वैसा भेष (अनुकूलन) – परिस्थिति के अनुसार।
  143. बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद (अयोग्यता) – वह नहीं समझेगा।
  144. नकल में अक्ल नहीं (नकल व्यर्थ) – खुद सोचो।
  145. कभी-कभी चुप रहना भी बुद्धिमानी है (संयम) – विवाद से बचो।
  146. खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे (झुंझलाहट) – हार पर ऐसा हुआ।
  147. आसमान से गिरे खजूर में अटके (और बुरा) – हालत बिगड़ी।
  148. सस्ता रोए बार-बार (घटिया चीज़) – गुणवत्ता लो।
  149. जिसके सिर पर हाथ हो उसे डर नहीं (संरक्षण) – वह निश्चिंत है।
  150. सब्र का फल मीठा होता है (धैर्य) – इंतज़ार करो।

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